कुमारी पूजन या कंजक पूजन

कुमारी पूजन या कंजक पूजन
October 02, 2025
Ritualistic Worship
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कुमारी पूजन या कंजक पूजन

कन्या पूजन, जिसे कंजक भी कहा जाता है, नवरात्रि के आठवें (अष्टमी) या नौवें (नवमी) दिन किया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र अनुष्ठान है। इस दिन छोटी बच्चियों को, जिन्हें माँ दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है, बड़ी श्रद्धा और भक्ति से पूजित किया जाता है। उनके पाँव धोए जाते हैं, माथे पर तिलक लगाया जाता है और उन्हें पूड़ी, चना और हलवा जैसे पारंपरिक प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। यह अनुष्ठान केवल परंपरा भर नहीं है, बल्कि यह याद दिलाता है कि सच्ची दिव्यता मासूमियत और पवित्रता में बसती है। इन बच्चियों का सम्मान करके भक्त माँ दुर्गा के शक्ति, संरक्षण और आशीर्वाद के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। कन्या पूजन स्त्रीत्व के सम्मान और उस नारी शक्ति का सुंदर प्रतीक है, जो पूरे ब्रह्मांड को संभालती है।
कन्या पूजन, जिसे कुमारी पूजन या कंजक पूजन भी कहा जाता है, नवरात्रि के सबसे पवित्र अनुष्ठानों में से एक है। यह मुख्य रूप से अष्टमी या नवमी के दिन किया जाता है। इस दिन छोटी बच्चियों (आमतौर पर 2 से 10 वर्ष की आयु तक) को देवी दुर्गा के नौ रूपों (नवदुर्गा) का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। हिंदू मान्यता है कि हर कन्या में शक्ति का वास होता है। इसलिए कन्या पूजन, देवी की शक्ति, पवित्रता और आशीर्वाद को मान देने का एक प्रतीक है।

पौराणिक पृष्ठभूमि

देवी महात्म्य (मार्कंडेय पुराण का हिस्सा) के अनुसार, माँ दुर्गा ही ऊर्जा का परम स्रोत हैं, जो समय-समय पर अलग-अलग रूप धारण कर असुरों का वध करती हैं और संसार में संतुलन लाती हैं।

कन्या पूजन को माँ की पूजा के समान माना गया है, क्योंकि हर कन्या देवी के एक रूप का प्रतिनिधित्व करती है।

महाभारत में उल्लेख है कि कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने विजय के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु कन्या पूजन किया था।

कन्या पूजन कब किया जाता है?

आमतौर पर महाअष्टमी या महा नवमी को।

कुछ लोग दोनों दिन यह अनुष्ठान करते हैं।

यह परंपरा विशेष रूप से उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, बिहार) में अधिक लोकप्रिय है, लेकिन पूरे भारत में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है।

कन्या पूजन की विधि

कन्याओं को आमंत्रित करना – नौ बच्चियों को घर बुलाया जाता है, जो दुर्गा माँ के नौ रूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। कई बार एक छोटे लड़के (लंगूरा) को भी बुलाया जाता है, जो भैरव का प्रतीक है।

पाँव धोना – परंपरा अनुसार बच्चियों के पाँव धोकर उनका स्वागत किया जाता है। यह पवित्रता और नकारात्मकता दूर करने का संकेत है।

तिलक और पूजा – उनके माथे पर लाल तिलक लगाया जाता है और फूल, अगरबत्ती और मंत्रों से उनकी पूजा की जाती है।

भोजन और प्रसाद – बच्चियों को प्यार से हलवा, पूड़ी और काले चने परोसे जाते हैं, जिन्हें माँ दुर्गा का प्रिय भोजन माना जाता है।

उपहार और दक्षिणा – पूजा के बाद उन्हें चुड़ियाँ, रिबन, खिलौने, कपड़े या पैसे भेंट किए जाते हैं।

कन्या पूजन का प्रतीकात्मक अर्थ

पवित्रता और मासूमियत – बच्चियाँ निर्मल और शुद्ध ऊर्जा का रूप होती हैं।

शक्ति – हर कन्या देवी की शक्ति का प्रतीक है।

सम्मान और समानता – यह समाज को स्त्रियों और कन्याओं का सम्मान करना सिखाता है।

कृतज्ञता – माँ दुर्गा के पालन-पोषण करने वाले स्वरूप को मान्यता दी जाती है।

वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण

मानसिक प्रभाव – बच्चियाँ सम्मान और प्यार पाकर आत्मविश्वास महसूस करती हैं।

सामाजिक जुड़ाव – यह परंपरा परिवारों और समाज को एक-दूसरे से जोड़ती है।

पौष्टिक प्रसाद – हलवा, पूड़ी और चने पौष्टिक भोजन है, जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और ऊर्जा सब मिलते हैं।

लैंगिक समानता का संदेश – यह रीति बताती है कि हर कन्या देवी का स्वरूप है और उसका सम्मान जरूरी है।

क्षेत्रीय परंपराएँ

पश्चिम बंगाल – यहाँ कुमारी पूजा होती है, जिसमें एक कन्या को जीवित दुर्गा मानकर पूजा जाता है।

दक्षिण भारत – मंदिरों में कन्याओं का सम्मान कर उन्हें देवी का रूप माना जाता है।

नेपाल – यहाँ कुछ कन्याओं को कुमारी देवी के रूप में जीवित देवी मानकर पूजा जाता है।

कन्या पूजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह याद दिलाता है कि स्त्री शक्ति ही पूरे ब्रह्मांड को संभालती है। छोटी बच्चियों की पूजा करके भक्त माँ दुर्गा के पवित्र स्वरूप का सम्मान करते हैं और स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद माँगते हैं। साथ ही, यह समाज को यह संदेश देता है कि हर कन्या देवी का ही रूप है और उसे सम्मान और स्नेह देना हमारा कर्तव्य है।