आदिशक्ति

आदिशक्ति
October 06, 2025
Dieties/devta gan
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आदिशक्ति

आदिशक्ति वह शक्ति हैं जिनसे इस सृष्टि की शुरुआत हुई। जब कुछ भी नहीं था — न समय, न स्थान, न शब्द — तब उसी शून्य से आदिशक्ति के रूप में ऊर्जा प्रकट हुई। वही शक्ति देवताओं की जननी बनी, वही जीवन का आधार है। वह केवल एक देवी नहीं, बल्कि वह चेतना है जो हर कण में, हर हृदय में प्रवाहित होती है। हिंदू दर्शन में आदिशक्ति को सृष्टि की प्रथम ऊर्जा कहा गया है — जो ब्रह्मा के रूप में रचती है, विष्णु के रूप में पालती है, और शिव के रूप में संहार करती है। वह सरस्वती में ज्ञान है, लक्ष्मी में समृद्धि है, और पार्वती में शक्ति है। आदिशक्ति हमें यह सिखाती हैं कि दिव्यता कहीं बाहर नहीं, हमारे भीतर ही बसती है। जब हम प्रेम, साहस और करुणा से कार्य करते हैं — तब वही शक्ति हमारे माध्यम से प्रकट होती है।
आदिशक्ति — सारी ऊर्जा का मूल स्रोत

सृष्टि से पहले कुछ भी नहीं था — न समय, न स्थान, न कोई आवाज़।
उसी शून्यता से एक कंपन उठा, जीवन की पहली हलचल — वही है आदिशक्ति, जो इस पूरे ब्रह्मांड की जननी है।
हर देवता, ग्रह, तत्व और जीव उसी से उत्पन्न हुए हैं।
वह केवल एक देवी नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो पूरे अस्तित्व में प्राण फूंकती है।

आदिशक्ति कौन हैं?

हिंदू दर्शन में आदिशक्ति (या महाशक्ति, देवी) वह प्रथम शक्ति हैं, जो सृष्टि की शुरुआत का कारण बनीं।
जहाँ ब्रह्म (परम चेतना) शांत और निराकार है, वहीं आदिशक्ति उसकी सक्रिय शक्ति हैं — जो सृष्टि को रचती, चलाती और बदलती हैं।

उनके तीन मुख्य रूप हैं —

सरस्वती — ज्ञान और बुद्धि की शक्ति

लक्ष्मी — समृद्धि और वैभव की शक्ति

पार्वती (दुर्गा/काली) — बल और परिवर्तन की शक्ति

ये तीनों मिलकर त्रिदेवी कहलाती हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति की स्त्री शक्ति हैं।

शक्ति का रहस्य

देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि सृष्टि से पहले केवल शक्ति ही थी।
उन्हीं की इच्छा से सृष्टि की रचना हुई।
उनसे ही प्रकट हुए —

शिव — चेतना,

विष्णु — पालन करने वाले,

ब्रह्मा — सृजन करने वाले।

सरल शब्दों में —
शक्ति ऊर्जा है और शिव चेतना हैं।
शक्ति बिना शिव निष्क्रिय हैं, और शिव बिना शक्ति दिशाहीन।
दोनों एक ही परम सत्य के दो पहलू हैं।

शक्ति का विज्ञान

आदिशक्ति वही कॉस्मिक एनर्जी (महाशक्ति) हैं, जिसे आज विज्ञान “क्वांटम फील्ड” या “जीरो पॉइंट एनर्जी” कहता है।
हर परमाणु, हर कोशिका में वही शक्ति कंपन करती है।
जो ऊर्जा आकाशगंगाओं को घुमाती है, वही आपके हृदय की धड़कन को भी चलाती है।

योगशास्त्र में कहा गया है कि रीढ़ की हड्डी के नीचे जो कुंडलिनी शक्ति सोई रहती है, वही आपके भीतर की आदिशक्ति है।
जब साधना और भक्ति से यह शक्ति जागृत होती है, तो वह ऊपर उठती है और शिव से मिलन करती है — यही समाधि या परम ज्ञान की अवस्था है।

धर्मग्रंथों में आदिशक्ति

देवी महात्म्य में वर्णन है कि जब सृष्टि पर अंधकार छा गया, तब आदिशक्ति प्रकाश के रूप में प्रकट हुईं।
उन्होंने महिषासुर जैसे असुरों का नाश किया — जो अज्ञान और अहंकार का प्रतीक हैं।
नवरात्रि में यही कथा मनाई जाती है।
इसका सच्चा अर्थ यह है —

“असुर हमारा अहंकार है, और आदिशक्ति वह चेतना है जो उसे समाप्त करती है।”

शक्ति का विस्तार

प्रकृति के हर तत्व में वही शक्ति काम करती है —

अग्नि जलती है क्योंकि उसमें शक्ति है।

जल बहता है क्योंकि उसमें शक्ति है।

वायु चलती है क्योंकि उसमें शक्ति है।

सूर्य चमकता है क्योंकि उसमें शक्ति है।

मन सोचता है क्योंकि उसमें शक्ति है।

यदि शक्ति न हो, तो ब्रह्मांड स्थिर और निर्जीव हो जाएगा।

शक्ति हमारे भीतर

सबसे बड़ा रहस्य यह है कि आदिशक्ति हमारे बाहर नहीं, हमारे भीतर हैं।
हर धड़कन, हर भावना में वही ऊर्जा बहती है।
जब हम प्रेम, साहस या करुणा से कार्य करते हैं — तो वह शक्ति हमारे माध्यम से प्रकट होती है।

योग विज्ञान कहता है कि कुंडलिनी, जो रीढ़ के नीचे सर्पाकार रूप में सोई रहती है, वही हमारी आंतरिक आदिशक्ति है।
जब वह ऊपर उठती है, तो मनुष्य दिव्यता का अनुभव करता है।

कुछ रोचक तथ्य

श्री यंत्र, जो आदिशक्ति को समर्पित है, पूरे ब्रह्मांड की ज्यामिति को दर्शाता है।

“शक्ति” शब्द से ही “इलेक्ट्रिसिटी” शब्द की जड़ जुड़ी है — दोनों का अर्थ है ऊर्जा।

शक्ति पीठ वे स्थान हैं जहाँ देवी की ऊर्जा पृथ्वी पर प्रकट हुई — ये स्थान आज भी पृथ्वी के चुंबकीय केंद्रों से मेल खाते हैं।

योगियों के अनुसार, हृदय की “लब-डब” ध्वनि “शिव-शक्ति” का प्रतीक है — सृष्टि की अनंत लय।

प्रतीकात्मक अर्थ

सिंह या बाघ की सवारी — अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण।

हथियार — नकारात्मकता को नष्ट करने की शक्ति।

कमल — अशांति में भी पवित्रता।

दस भुजाएँ — अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो साथ काम करती हैं।

देवी की मूर्ति का हर प्रतीक आत्मबल और संतुलन का संदेश देता है। माँ दुर्गा, जो आदिशक्ति का रूप हैं, नौ ग्रहों को नियंत्रित करती हैं ताकि ब्रह्मांड में साम्य और व्यवस्था बनी रहे। माँ दुर्गा अपने नवदुर्गा रूप में नौ ग्रहों को ऊर्जा प्रदान करती हैं। नवदुर्गा के विभिन्न रूप इस प्रकार हैं:

कुश्मांडा शक्ति — सूर्य ग्रह को नियंत्रित करती हैं

महागौरी — राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं

कालरात्रि — शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं

सिद्धिदात्री — केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं

कात्यायिनी — बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं

ब्रह्मचारिणी — मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं

शैलपुत्री — चंद्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं

स्कंद माता — बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं

चंद्रघंटा — शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं

नवरात्रि के दिनों में दिव्य माता आदिपराशक्ति की शक्ति या ब्रह्मांडीय ऊर्जा पृथ्वी पर अपने अधिकतम स्तर पर होती है।
यही समय है जब मनुष्य उनकी पूजा कर सकते हैं और बुरी शक्तियों के प्रभाव से बचाव के लिए उनकी ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।

आदिपराशक्ति अपने मूल स्वरूप में देवी दुर्गा, सती और पार्वती के रूप में प्रकट हुईं।

आदिशक्ति कोई दूर की देवी नहीं हैं — वे स्वयं जीवन हैं।
वह हमारे प्राणों की धड़कन, तारों की चमक, और हमारे भीतर की शक्ति हैं।
जब हम यह समझते हैं कि वही ऊर्जा हमारे भीतर प्रवाहित होती है, तब भय मिट जाता है और आत्मविश्वास जाग उठता है।

छिपा हुआ सत्य

ब्रह्मांड वस्तु से नहीं, शक्ति से बना है।
जब तुम उस शक्ति को अपने भीतर जगाते हो, तब तुम केवल देवी की पूजा नहीं करते — तुम स्वयं देवी बन जाते हो।