
October 05, 2025
Festival Fast
1 min read
छठ पूजा
छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित एक पवित्र पर्व है। यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है, जिसमें उपवास, स्नान, और उगते व डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा होती है।
छठ पूजा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, कृतज्ञता और पवित्रता का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और सूर्य देव का आभार प्रकट करते हैं। घाटों पर खड़े श्रद्धालु जब सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो वह दृश्य अत्यंत दिव्य और शांतिमय होता है।
🌅 परिचय
छठ पूजा भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र त्योहारों में से एक है। यह सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, जिन्हें सूर्य देव की बहन माना जाता है। यह पर्व आस्था, शुद्धता और कृतज्ञता का प्रतीक है। मुख्य रूप से यह बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है, लेकिन आज यह पूरे देश और विदेशों में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
छठ पूजा दीवाली के छह दिन बाद कार्तिक माह (अक्टूबर–नवंबर) में मनाई जाती है। इस समय वातावरण शांत और मनभावन होता है। घरों में भक्ति गीत गूंजते हैं और रसोई में ठेकुआ की सुगंध फैल जाती है।
📜 छठ पूजा की उत्पत्ति कथा
छठ पूजा की परंपरा हजारों साल पुरानी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसकी शुरुआत महाभारत काल में हुई थी।
कहा जाता है कि द्रौपदी और पांडवों ने संकट के समय सूर्य देव का धन्यवाद करने के लिए छठ पूजा की थी।
एक अन्य कथा के अनुसार, कर्ण, जो सूर्य देव और कुंती के पुत्र थे, प्रतिदिन नदी में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे। इस कारण उन्हें छठ पूजा का प्रथम उपासक माना जाता है।
वैदिक काल में भी लोग सूर्य देव की पूजा करते थे, क्योंकि सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य और समृद्धि का दाता माना गया है। इस प्रकार छठ पूजा भारत की सबसे प्राचीन प्रकृति उपासना की परंपरा का प्रतीक है।
🌻 छठ पूजा के चार दिन
यह पर्व चार दिनों तक चलता है, और प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व होता है –
नहाय-खाय (पहला दिन):
इस दिन श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और घर की शुद्धि करते हैं। वे कद्दू-भात जैसा सादा भोजन करते हैं, जिससे व्रत की शुरुआत होती है।
खरना (दूसरा दिन):
व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को दूध, चावल और गुड़ से बनी खीर तैयार की जाती है, जिसे सूर्य देव को अर्पित किया जाता है और परिवार में बाँटी जाती है।
संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन):
यह दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। श्रद्धालु घाटों पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। उनके साथ टोकरी में फल, ठेकुआ, गन्ना और नारियल जैसे प्रसाद होते हैं।
उषा अर्घ्य (चौथा दिन):
अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है।
🌞 आस्था और मान्यताएँ
छठ पूजा का मूल भाव सूर्य देव के प्रति आभार और प्रकृति के प्रति सम्मान है। माना जाता है कि सूर्य देव की पूजा से रोग-शोक दूर होते हैं और जीवन में ऊर्जा, सुख और समृद्धि आती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर ही जीवन संतुलित रह सकता है।
🌼 छठ पूजा से जुड़े रोचक तथ्य
छठ पूजा में उगते और डूबते दोनों सूर्य की पूजा की जाती है।
इस पूजा के लिए पंडित की आवश्यकता नहीं होती, सभी अनुष्ठान व्रती स्वयं करते हैं।
इसमें विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, फल और चावल के लड्डू बनाए जाते हैं।
यह त्योहार पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल (eco-friendly) होता है।
छठ के गीत पीढ़ी दर पीढ़ी गाए जाते हैं, जो लोक संस्कृति और भक्ति का सुंदर मेल हैं।
🌺 निष्कर्ष
छठ पूजा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भक्ति, शुद्धता और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। यह हमें सिखाती है कि प्रकृति का सम्मान करें, जीवन में अनुशासन रखें और हर नए सवेरे का स्वागत आस्था के साथ करें। जब व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो वह दृश्य आस्था, शांति और नए आरंभ का प्रतीक बन जाता है।
छठ पूजा भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र त्योहारों में से एक है। यह सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, जिन्हें सूर्य देव की बहन माना जाता है। यह पर्व आस्था, शुद्धता और कृतज्ञता का प्रतीक है। मुख्य रूप से यह बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है, लेकिन आज यह पूरे देश और विदेशों में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
छठ पूजा दीवाली के छह दिन बाद कार्तिक माह (अक्टूबर–नवंबर) में मनाई जाती है। इस समय वातावरण शांत और मनभावन होता है। घरों में भक्ति गीत गूंजते हैं और रसोई में ठेकुआ की सुगंध फैल जाती है।
📜 छठ पूजा की उत्पत्ति कथा
छठ पूजा की परंपरा हजारों साल पुरानी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसकी शुरुआत महाभारत काल में हुई थी।
कहा जाता है कि द्रौपदी और पांडवों ने संकट के समय सूर्य देव का धन्यवाद करने के लिए छठ पूजा की थी।
एक अन्य कथा के अनुसार, कर्ण, जो सूर्य देव और कुंती के पुत्र थे, प्रतिदिन नदी में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे। इस कारण उन्हें छठ पूजा का प्रथम उपासक माना जाता है।
वैदिक काल में भी लोग सूर्य देव की पूजा करते थे, क्योंकि सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य और समृद्धि का दाता माना गया है। इस प्रकार छठ पूजा भारत की सबसे प्राचीन प्रकृति उपासना की परंपरा का प्रतीक है।
🌻 छठ पूजा के चार दिन
यह पर्व चार दिनों तक चलता है, और प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व होता है –
नहाय-खाय (पहला दिन):
इस दिन श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और घर की शुद्धि करते हैं। वे कद्दू-भात जैसा सादा भोजन करते हैं, जिससे व्रत की शुरुआत होती है।
खरना (दूसरा दिन):
व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को दूध, चावल और गुड़ से बनी खीर तैयार की जाती है, जिसे सूर्य देव को अर्पित किया जाता है और परिवार में बाँटी जाती है।
संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन):
यह दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। श्रद्धालु घाटों पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। उनके साथ टोकरी में फल, ठेकुआ, गन्ना और नारियल जैसे प्रसाद होते हैं।
उषा अर्घ्य (चौथा दिन):
अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है।
🌞 आस्था और मान्यताएँ
छठ पूजा का मूल भाव सूर्य देव के प्रति आभार और प्रकृति के प्रति सम्मान है। माना जाता है कि सूर्य देव की पूजा से रोग-शोक दूर होते हैं और जीवन में ऊर्जा, सुख और समृद्धि आती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर ही जीवन संतुलित रह सकता है।
🌼 छठ पूजा से जुड़े रोचक तथ्य
छठ पूजा में उगते और डूबते दोनों सूर्य की पूजा की जाती है।
इस पूजा के लिए पंडित की आवश्यकता नहीं होती, सभी अनुष्ठान व्रती स्वयं करते हैं।
इसमें विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, फल और चावल के लड्डू बनाए जाते हैं।
यह त्योहार पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल (eco-friendly) होता है।
छठ के गीत पीढ़ी दर पीढ़ी गाए जाते हैं, जो लोक संस्कृति और भक्ति का सुंदर मेल हैं।
🌺 निष्कर्ष
छठ पूजा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भक्ति, शुद्धता और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। यह हमें सिखाती है कि प्रकृति का सम्मान करें, जीवन में अनुशासन रखें और हर नए सवेरे का स्वागत आस्था के साथ करें। जब व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो वह दृश्य आस्था, शांति और नए आरंभ का प्रतीक बन जाता है।